मैं एक शहर हूं
मैं एक शहर हूं
थोड़ा मीठा थोड़ा कड़वा
तो थोड़ा जहर हूं
उम्र के साथ साथ मेरा
आकार बढ़ रहा है
तरक्की के नाम पे मूझपे
अत्याचार बढ़ रहा है
मुद्दत से मैं सोएआ नही
रातों में जागता हूं
मानो खिलते ही सुबहा के
नंगे पाऊं भागता हूं
मेरी गलियों में सड़कों पे
एक शोर गूंजता है
पर हर शखश यहां तन्हा
जो खुशी ढूंढता है
कुच्छ गंदा तो कुच्छ मैला
कुच्छ साफ भी हूं मैं
कुच्छ जला कुच्छ धुखा हुआ
कुच्छ राख भी हूं मैं
मेरी आब ओ हवा मानो
तेजाबी सी हो रही है
मेरे नाम जंगलों की
हां बरबादी हो रही है
भले आज मैं तुम्हारे लिए वरदान हूं
पर आने वाले कल का मैं ही कहर हूं
मैं एक शहर हूं
मैं एक शहर हूं
©Ranjit Singh Mashiana
मैं एक शहर हूं
मैं एक शहर हूं
थोड़ा मीठा थोड़ा कड़वा
तो थोड़ा जहर हूं
उम्र के साथ साथ मेरा
आकार बढ़ रहा है
तरक्की के नाम पे मूझपे
अत्याचार बढ़ रहा है