न है घर का रिश्ता , न है खून का रिश्ता मानो जैसे | हिंदी कविता

"न है घर का रिश्ता , न है खून का रिश्ता मानो जैसे है वो मेरा फरिश्ता , उसके जितना कोई समझ ना पाता ऐसा दोस्त कभी इतफाक नहीं होता कभी डाटा , कभी मनाया , कभी हसाया जो सही था उसके बल बढ़ना सिखाया जब कोई नहीं आया , वो आगे डता रहा ऐसा दोस्त कभी इतफाक नहीं होता । मेरे लिए दुनिया से लड़ा , खुद घायल बनकर मुझे जिताया , ऐसा दोस्त कभी इतफाक नहीं होता । -rahee Gandhi"

 न है घर का रिश्ता , न है खून का रिश्ता 
मानो जैसे है वो मेरा  फरिश्ता ,
उसके जितना कोई समझ ना पाता 
ऐसा दोस्त कभी इतफाक नहीं होता 
कभी डाटा , कभी मनाया , कभी हसाया
जो सही था उसके बल बढ़ना सिखाया 
जब कोई नहीं आया , वो आगे डता रहा 
ऐसा दोस्त कभी इतफाक नहीं होता ।
मेरे लिए दुनिया से लड़ा ,
खुद घायल बनकर मुझे जिताया , 
ऐसा दोस्त कभी इतफाक नहीं होता ।
 -rahee Gandhi

न है घर का रिश्ता , न है खून का रिश्ता मानो जैसे है वो मेरा फरिश्ता , उसके जितना कोई समझ ना पाता ऐसा दोस्त कभी इतफाक नहीं होता कभी डाटा , कभी मनाया , कभी हसाया जो सही था उसके बल बढ़ना सिखाया जब कोई नहीं आया , वो आगे डता रहा ऐसा दोस्त कभी इतफाक नहीं होता । मेरे लिए दुनिया से लड़ा , खुद घायल बनकर मुझे जिताया , ऐसा दोस्त कभी इतफाक नहीं होता । -rahee Gandhi

#Friendship

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