यूं ही चलते जा रहे हैं,
जाना कहां, ना है पता
मगर फिर भी क्यों
कुछ लोग घर से बाहर आ रहे हैं
ताली भी बजाई, थाली भी बजाई
जनता कर्फ्यू के दिन भी
जनता घर से बाहर नजर आई
सब किए कराए पर पानी फिरा रहे हैं
जाना कहां, ना है पता
मगर फिर भी क्यों
कुछ लोग घर से बाहर आ रहे हैं
अफवाह से कभी बस भरी
कभी बिना मतलब की भीड़ करी
राज्य सरकारों की राजनीति में
भोली भाली जनता ही मरी
पर यूं ही चलते जा रहे हैं,
जाना कहां, ना है पता
मगर फिर भी क्यों
हम घर से बाहर आ रहे हैं
सब की सलाह दी कि घर में ही करो गुजारा
जब कोई ना माना तो लगा दी 144 धारा
बाहर निकले तो पुलिस का डंडा भी खाया
पर बेशर्मी इतनी कि कभी पुलिस को ही मारा
यह सब करके हम क्या पा रहे हैं
जाना कहां, ना है पता
मगर फिर भी क्यों
कुछ लोग घर से बाहर आ रहे हैं
सनक ऐसी इन चंद लोगों की,
कुछ गेरुए, काले और सफेद चोगों की
नापाक कहूं या जाहिल कहूं
नहीं सुन रहे बात जो भुक्तभोगों की
इस तनाव में भी मरकज जमात लगा रहे हैं
जाना कहां, ना है पता
मगर फिर भी क्यों
कुछ लोग घर से बाहर आ रहे हैं
मान जाओ, यह है संकट की घड़ी
मजबूरी है, ऐसी विपदा आन पड़ी
घर के भीतर बचे रहोगे
दरवाजे के बाहर है मौत खड़ी
क्यों अपनी जान दांव पर लगा रहे हैं
जाना कहां, ना है पता
मगर फिर भी क्यों
कुछ लोग घर से बाहर आ रहे हैं
आपात सेवाओं का सहयोग करो
अपनी काया को निरोग करो
घर में ही रहो और करो व्यायाम
आदित्यनमस्कार करो तथा योग करो
डॉक्टर्स भी है कि समझा रहे हैं
अदृश्य शत्रु से लड़ रहे हैं हम
तो फिर भी क्यों
आप घर से बाहर आ रहे हैं
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