दोहा :-
मिलकर करना वंदना , कहते पुराण वेद ।
कट जायेंगे कष्ट सब , करो न कोई भेद ।।
हृदय रखो विश्वास तो , चले राम जी साथ ।
बस कर लो अनुभूति यह , वे ही थामें हाथ ।।
कैसे मानूँ मैं यहाँ ,हूँ मैं एक अनाथ ।
चलते भोलेनाथ जी , थामें मेरा हाथ ।।
सोम-सोम उपवास कर , भर मन में विश्वास ।
हरे व्याधि शिवनाथ जी , रखना इतनी आस ।।
रिश्तों में विश्वास ही , हुए मनुज के प्राण ।
अगर नहीं विश्वास तो , मधुर वचन भी बाण ।।
मातु-पिता भगवान हैं , कर भी लो विश्वास ।
उनसे ही तो पूर्ण है, जीवन की हर आस ।।
गुरुवर होते देव हैं , देते समुचित ज्ञान ।
जिसको पाकर शिष्य सब , बन जाते इंसान ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर
©MAHENDRA SINGH PRAKHAR
दोहा :-
मिलकर करना वंदना , कहते पुराण वेद ।
कट जायेंगे कष्ट सब , करो न कोई भेद ।।
हृदय रखो विश्वास तो , चले राम जी साथ ।
बस कर लो अनुभूति यह , वे ही थामें हाथ ।।
कैसे मानूँ मैं यहाँ ,हूँ मैं एक अनाथ ।