ख्वाइसो के समंदर में किनारा डूंड रहा हूं
बेमतलब बेसहारा दुनियां में सहारा डूंड रहा हूं
जानता हूं कोई अपना नही है,फिर भी अपना डूंड रहा हूं
अपने के चक्कर में सपना भूल रहा हूं
गांव और शहर के बीच में अपनो को भूल गया हु
जैसे आसमान से टपका हु और कजूर पे झूल गया हु
©Hr Naresh
#theatreday