एक-दूजे के प्रति ख़त्म हो जायेंगी उलफ़तें और ख़त्म
"एक-दूजे के प्रति ख़त्म हो जायेंगी उलफ़तें और ख़त्म हो जायेगा हुस्न-ए-किरदार
यानि कि ज़माना-ए-मुस्तक़बिल में पर्दा नश़ीं औरतें भी हो जायेंगी आश़कार
अजी ग़ैर तो ग़ैर ही है
पर अपनों पे भी चलाया जायेगा तलवार
मो.इक्साद अंसारी"
एक-दूजे के प्रति ख़त्म हो जायेंगी उलफ़तें और ख़त्म हो जायेगा हुस्न-ए-किरदार
यानि कि ज़माना-ए-मुस्तक़बिल में पर्दा नश़ीं औरतें भी हो जायेंगी आश़कार
अजी ग़ैर तो ग़ैर ही है
पर अपनों पे भी चलाया जायेगा तलवार
मो.इक्साद अंसारी