White सर्दी है मौत की झड़ी सर्दी की रात होती, कुछ | हिंदी Sad

"White सर्दी है मौत की झड़ी सर्दी की रात होती, कुछ ज़्यादा ही बड़ी है। रफ्तार मंद कर के, लगता चली घड़ी है।। सन्नाटा हर तरफ है, क्यों रूहें हैं भटकतीं। घनघोर धुंध छाई, हर ओर हड़बड़ी है।। धड़कन दिलों की चलती, थमती कभी लगी है। दिल रुक गया यकायक, यह मौत की घड़ी है।। जहरीली हैं हवाएं, घुटती जाती हैं साँसें। दर-दर पे शहर भर में, झड मौत आ खड़ी है।। कुछ दोस्त, कुछ पड़ोसी, इस हफ्ते चल बसे हैं। सर्दी डरावनी है, जुड़ती जाती कड़ी है।। किसको पता चला कब, कल उसकी ही बारी है। यह मौत कब टली है, मिलती कहाँ जड़ी है।। कुछ सूझता नहीं है, बढ़ जाते हादसे हैं। अख़बार पढ़ लगा यह, रुत मौत की झड़ी है।। आचार नेक रखना, कल की नहीं गारंटी। पहले ख़बर मिली कब, यम की पड़ी छड़ी है।। जिसने लड़ी लड़ाई, उसने सफलता पाई। हारा वही हमेशा, की जिसने गड़बड़ी है।। पीछे साथी छूटे तो, कब रुकता कारवाँ है। साथी नए मिलेंगे, आशा बहुत बड़ी है।। अब सब्र के सहारे, आगे बढ़ो। कब ज़िंदगी रुकी है, आगे बहुत पड़ी है।। ©Vishnu Hallu"

 White सर्दी है मौत की झड़ी

सर्दी की रात होती, कुछ ज़्यादा ही बड़ी है।
रफ्तार मंद कर के, लगता चली घड़ी है।।

सन्नाटा हर तरफ है, क्यों रूहें हैं भटकतीं।
घनघोर धुंध छाई, हर ओर हड़बड़ी है।।

धड़कन दिलों की चलती, थमती कभी लगी है।
दिल रुक गया यकायक, यह मौत की घड़ी है।।

जहरीली हैं हवाएं, घुटती जाती हैं साँसें।
दर-दर पे शहर भर में, झड मौत आ खड़ी है।।

कुछ दोस्त, कुछ पड़ोसी, इस हफ्ते चल बसे हैं।
सर्दी डरावनी है, जुड़ती जाती कड़ी है।।

किसको पता चला कब, कल उसकी ही बारी है।
यह मौत कब टली है, मिलती कहाँ जड़ी है।।

कुछ सूझता नहीं है, बढ़ जाते हादसे हैं।
अख़बार पढ़ लगा यह, रुत मौत की झड़ी है।।

आचार नेक रखना, कल की नहीं गारंटी।
पहले ख़बर मिली कब, यम की पड़ी छड़ी है।।

जिसने लड़ी लड़ाई, उसने सफलता पाई।
हारा वही हमेशा, की जिसने गड़बड़ी है।।

पीछे साथी छूटे तो, कब रुकता कारवाँ है।
साथी नए मिलेंगे, आशा बहुत बड़ी है।।

अब सब्र के सहारे, आगे बढ़ो।
कब ज़िंदगी रुकी है, आगे बहुत पड़ी है।।

©Vishnu Hallu

White सर्दी है मौत की झड़ी सर्दी की रात होती, कुछ ज़्यादा ही बड़ी है। रफ्तार मंद कर के, लगता चली घड़ी है।। सन्नाटा हर तरफ है, क्यों रूहें हैं भटकतीं। घनघोर धुंध छाई, हर ओर हड़बड़ी है।। धड़कन दिलों की चलती, थमती कभी लगी है। दिल रुक गया यकायक, यह मौत की घड़ी है।। जहरीली हैं हवाएं, घुटती जाती हैं साँसें। दर-दर पे शहर भर में, झड मौत आ खड़ी है।। कुछ दोस्त, कुछ पड़ोसी, इस हफ्ते चल बसे हैं। सर्दी डरावनी है, जुड़ती जाती कड़ी है।। किसको पता चला कब, कल उसकी ही बारी है। यह मौत कब टली है, मिलती कहाँ जड़ी है।। कुछ सूझता नहीं है, बढ़ जाते हादसे हैं। अख़बार पढ़ लगा यह, रुत मौत की झड़ी है।। आचार नेक रखना, कल की नहीं गारंटी। पहले ख़बर मिली कब, यम की पड़ी छड़ी है।। जिसने लड़ी लड़ाई, उसने सफलता पाई। हारा वही हमेशा, की जिसने गड़बड़ी है।। पीछे साथी छूटे तो, कब रुकता कारवाँ है। साथी नए मिलेंगे, आशा बहुत बड़ी है।। अब सब्र के सहारे, आगे बढ़ो। कब ज़िंदगी रुकी है, आगे बहुत पड़ी है।। ©Vishnu Hallu

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