अब क्या कहूं मन भी लगे ये सनकी
सुनी जन की
कहे तु मत कर अपने मनकी
तेरे कागज और कलम से
पूरी नही होगी कमी धन की
मन कस्मकस में ना मेरे बस में
मैं सच में धसने लगा हूँ विपरित परिस्थितियों और अपने सपने पाने की दबस में
लिखने की लत में नजर आऊ गलत मैं
तो हक से मैं कहूं हो चूका हू इस नशे के वश में
©Pavan bhoyar
कस्मकस🫥
Written by -Pavan Bhoyar
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