हे जननी, हे जन्मभूमि, शत-बार तुम्हारा वंदन है।
सर्वप्रथम माँ तेरी पूजा, तेरा ही अभिनन्दन है।।
तेरी नदियों की कल-कल में सामवेद का मृदु स्वर है।
जहाँ ज्ञान की अविरल गंगा, वहीँ मातु तेरा वर है।
दे वरदान यही माँ, तुझ पर इस जीवन का पुष्प चढ़े।
तभी सफल हो मेरा जीवन, यह शरीर तो क्षण-भर है।
मस्तक पर शत बार धरुं मै, यह माटी तो चन्दन है।
सर्वप्रथम माँ तेरी पूजा, तेरा ही अभिनन्दन है।।१।।