कुआर की इस धूप में मृग भी काला पड़ जाता है ।।
पसिने से तर इस बदन पर सूखा वस्त्र भी भीग जाता है ।।
इस मौसम का हाल कुछ यूं बदल जाता है ।।
कभी घने बादलों का डेरा हो जाता है ।।
तो कभी कड़कती धूप का मंज़र हो जाता है ।।
कुआर की धूप में मृग भी काला पड़ जाता है ।।
बहती बयार की साज़िश में परिंदा भी फंस जाता है ।।
किसी टहनी पर बैठे बैठे उड़ना भूल जाता है ।।
@लेखकRai
कुआर की धूप #Nojotovoice