जज़्बात:-
अपने ही सवालों में घिरीं हुई
और उलझ-सी गई हूं मैं,
सोचते - सोचते सबकी खुशी
अपनी खुशी खो रही हूँ मैं,
कुछ खोया या सब पा लिया मैंने??
इसकी तलाश में कहीं दूर जा रही हूँ मैं,
अगर सब है मेरे पास तो कहाँ है??
इन एहसासों की याद धुंधला-सी रही है,
इसी अनदेखी परत को मिटाने,
आज़ाद होने जा रही हूँ मैं!!!
©@happiness
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