बचपन का सौदा अभी दिल हमारे चाहते थे पढ़ने लिखने,खे

"बचपन का सौदा अभी दिल हमारे चाहते थे पढ़ने लिखने,खेलने कूदने को, समाज के हाथों गरीबी ने मजबूर किया मेहनत करने को। बचपन क्या होता नही जान सके,श्रम से नाता जोड़ चुके, पल था फूलों के खिलने के ,खिलने से पहले मुरझा चुके। निर्धनता के वज्र प्रहार से मां बाप का हुआ बुरा हाल था, बीमारी लाचारी भूखमरी का परिवार पर छाया काल था। दो वक्त की रोटी के लिए बेच दिए हमने जीवन के सपने, बच्चों पर तरस खाता न समाज,भार उठाते नन्हे हाथों से। स्वार्थ में अंधा होता समाज,करता बालश्रम को अनदेखा, निर्धनता में जन्मे मासूमों से भाग्य भी करता अजब धौखा। त्यौहारों पर सहानुभूति दिखाने को थोड़ा प्यार दुलार देते, होटल ढाबों पे फिर से बचपन को छोटू बनाके धकेल देते। निर्धनता की चक्की में पीसकर के बचपन हो जाता चूर चूर, धीरे धीरे मासूमों का बचपन से टूट कर नाता हो जाता दूर। JP lodhi"

 बचपन का सौदा
अभी दिल हमारे चाहते थे पढ़ने लिखने,खेलने कूदने को,
 समाज के हाथों गरीबी ने मजबूर किया मेहनत करने को।
बचपन क्या होता नही जान सके,श्रम से नाता जोड़ चुके,
पल था फूलों के खिलने के ,खिलने से पहले मुरझा चुके।
निर्धनता के वज्र प्रहार से मां बाप का हुआ बुरा हाल था,
बीमारी लाचारी भूखमरी का परिवार पर छाया काल था।
दो वक्त की रोटी के लिए बेच दिए हमने जीवन के सपने,
बच्चों पर तरस खाता न समाज,भार उठाते नन्हे हाथों से।
स्वार्थ में अंधा होता समाज,करता बालश्रम को अनदेखा,
निर्धनता में जन्मे मासूमों से भाग्य भी करता अजब धौखा।
त्यौहारों पर सहानुभूति दिखाने को थोड़ा प्यार दुलार देते,
 होटल ढाबों पे फिर से बचपन को छोटू बनाके धकेल देते।
निर्धनता की चक्की में पीसकर के बचपन हो जाता चूर चूर,
धीरे धीरे मासूमों का बचपन से टूट कर नाता हो जाता दूर।
JP lodhi

बचपन का सौदा अभी दिल हमारे चाहते थे पढ़ने लिखने,खेलने कूदने को, समाज के हाथों गरीबी ने मजबूर किया मेहनत करने को। बचपन क्या होता नही जान सके,श्रम से नाता जोड़ चुके, पल था फूलों के खिलने के ,खिलने से पहले मुरझा चुके। निर्धनता के वज्र प्रहार से मां बाप का हुआ बुरा हाल था, बीमारी लाचारी भूखमरी का परिवार पर छाया काल था। दो वक्त की रोटी के लिए बेच दिए हमने जीवन के सपने, बच्चों पर तरस खाता न समाज,भार उठाते नन्हे हाथों से। स्वार्थ में अंधा होता समाज,करता बालश्रम को अनदेखा, निर्धनता में जन्मे मासूमों से भाग्य भी करता अजब धौखा। त्यौहारों पर सहानुभूति दिखाने को थोड़ा प्यार दुलार देते, होटल ढाबों पे फिर से बचपन को छोटू बनाके धकेल देते। निर्धनता की चक्की में पीसकर के बचपन हो जाता चूर चूर, धीरे धीरे मासूमों का बचपन से टूट कर नाता हो जाता दूर। JP lodhi

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