मुसाफ़िर बन निकल पड़ा मैं, अपनी ही तलाश में
कई मोड़ आए कई लोग आए अपनी ही तलाश में
मैं रुका नहीं मैं थका नहीं चलता ही गया हमेशा ही
अपनों से मिलने गैरों से मिलने अपनी ही तलाश में
©प्रतीक सिंघल 'प्रेमी'
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