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सुख से बैठे भी ज़माना हो गया
क्या करें मुश्किल कमाना हो गया
हम ज़माने से नहीं मुस्काए हैं
अब खुशी भी इक फ़साना हो गया
ग़म का रोना रोज़ लेकर बैठें क्यूं
रोज़ इसका आना जाना हो गया
जो हुआ करता था मेरा निगहबां
आज वह हमसे बेगाना हो गया
है सियासत का बहाना आज फिर
हर कोई इसका निशाना हो गया
आ चलें ए दोस्त आगे हम बढें
रोना - धोना अब पुराना हो गया
ग़म मिले या फिर खुशी मंजूर है
हमको जीने का बहाना हो गया ।
©आलोक जी
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