मेरे अलावा उसे हर कोई भाता था शख़्स क़माल था सबके स | हिंदी शायरी

"मेरे अलावा उसे हर कोई भाता था शख़्स क़माल था सबके संग मुस्कुराता था मेरी कही हर बात पर खार खाता था गैरों की गालियों पर भी तालियां बजाता था ये तो तय है के उसे कभी मोहब्बत थी ही नहीं मगर जब भी गले लगता था सुंकु बहोत आता था ©Kammal Kaant Joshii"

 मेरे अलावा उसे हर कोई भाता था 
शख़्स क़माल था सबके संग मुस्कुराता था
मेरी कही हर बात पर खार खाता था 
गैरों की गालियों पर भी तालियां बजाता था
ये तो तय है के उसे कभी मोहब्बत थी ही नहीं
मगर जब भी गले लगता था सुंकु बहोत आता था

©Kammal Kaant Joshii

मेरे अलावा उसे हर कोई भाता था शख़्स क़माल था सबके संग मुस्कुराता था मेरी कही हर बात पर खार खाता था गैरों की गालियों पर भी तालियां बजाता था ये तो तय है के उसे कभी मोहब्बत थी ही नहीं मगर जब भी गले लगता था सुंकु बहोत आता था ©Kammal Kaant Joshii

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