बेगानी डगर और ये आलम सुहाना हर एक मोड़ पर है ये पा | हिंदी Poetry

"बेगानी डगर और ये आलम सुहाना हर एक मोड़ पर है ये पागल दीवाना | कहां को चले थे कहां पर है जाना हर एक मोड़ देता है मंजर सुहाना || कभी रेत के टीलों सा है ये बेगाना कभी चांदनी रात का है दीवाना | अजब से भंवर  में फंसे जा रहे हैं ना पीछे  डगर है ना आगे सवेरा || भटकते भटकते कहीं दूर तक जब चले थे किसी की राहों में हम | फस गए इस कदर हम उसी राह पे न कस्ती बची थी न कोई किनारा || ©Ashish Rathore"

 बेगानी डगर और ये आलम सुहाना
हर एक मोड़ पर है ये पागल दीवाना |
कहां को चले थे कहां पर है जाना
हर एक मोड़ देता है मंजर सुहाना ||
कभी रेत के टीलों सा है ये बेगाना
कभी चांदनी रात का है दीवाना |
अजब से भंवर  में फंसे जा रहे हैं
ना पीछे  डगर है ना आगे सवेरा ||
भटकते भटकते कहीं दूर तक
जब चले थे किसी की राहों में हम |
फस गए इस कदर हम उसी राह पे
न कस्ती बची थी न कोई किनारा ||

©Ashish Rathore

बेगानी डगर और ये आलम सुहाना हर एक मोड़ पर है ये पागल दीवाना | कहां को चले थे कहां पर है जाना हर एक मोड़ देता है मंजर सुहाना || कभी रेत के टीलों सा है ये बेगाना कभी चांदनी रात का है दीवाना | अजब से भंवर  में फंसे जा रहे हैं ना पीछे  डगर है ना आगे सवेरा || भटकते भटकते कहीं दूर तक जब चले थे किसी की राहों में हम | फस गए इस कदर हम उसी राह पे न कस्ती बची थी न कोई किनारा || ©Ashish Rathore

#Journey

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