बेगानी डगर और ये आलम सुहाना
हर एक मोड़ पर है ये पागल दीवाना |
कहां को चले थे कहां पर है जाना
हर एक मोड़ देता है मंजर सुहाना ||
कभी रेत के टीलों सा है ये बेगाना
कभी चांदनी रात का है दीवाना |
अजब से भंवर में फंसे जा रहे हैं
ना पीछे डगर है ना आगे सवेरा ||
भटकते भटकते कहीं दूर तक
जब चले थे किसी की राहों में हम |
फस गए इस कदर हम उसी राह पे
न कस्ती बची थी न कोई किनारा ||
©Ashish Rathore
#Journey