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मुहब्बत की मिली हमको सजा है
ठिकाना अब मिरा बस मयकदा है
नहीं है गम जुदाई का हमें अब
जुदाई इश्क का तो फलसफा है
वफाओ की न कर बातें तु हमसे
मुझे मालूम है तू बेवफा है
गुनाहे इश्क हुआ मुझसे था ये
खता तेरी नहीं मेरी खता है
चुकाता फिर रहा किश्तें मुहब्बत
दरद अब बन गया दिल की दवा है
निकालूँ कैसे दिल से अपने तुमको
तु दिल में इस कदर मेरे बसा है
( लक्ष्मण दावानी )
4/12/2016
©laxman dawani
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