सिर्फ़ मैं भिन्न क्यूँ? वो कैसी सुबह थी जब मुझमें

"सिर्फ़ मैं भिन्न क्यूँ? वो कैसी सुबह थी जब मुझमें कुछ अलग भाँपा गया ना परिवार का साथ मिला ना माँ का साया मिला एक नए संसार को मेरा घर बतलाया गया उसी क्षण मुझे सामाजिक दायरों में नाप दिया गया ग़ैरों की क्या बात करूँ? अपनों ने भी नकार दिया बराबरी का हक़ तो लिखा गया है कागजातों पर ज़मीनी हकीक़त में इसे मानने से इंकार किया गया सबके जैसे उसी कोख से पैदा हुआ फ़िर क्यूँ मेरा बहिष्कार किया गया? है कुछ सवाल मेरे जेहन में अब, जिन्हें जब मैं पूछता हूँ हिजड़े हो हिजड़े बन कर रहो हमारे समाज से दूर रहो हमेशा यही जबाब बस दिया गया!!                               - अपनी कलम 🖋️"

 सिर्फ़ मैं भिन्न क्यूँ?

वो कैसी सुबह थी
जब मुझमें कुछ अलग भाँपा गया
ना परिवार का साथ मिला
ना माँ का साया मिला 
एक नए संसार को
मेरा घर बतलाया गया
उसी क्षण मुझे
सामाजिक दायरों में नाप दिया गया 
ग़ैरों की क्या बात करूँ? 
अपनों ने भी नकार दिया
बराबरी का हक़ तो लिखा गया है कागजातों पर
ज़मीनी हकीक़त में इसे मानने से इंकार किया गया 
सबके जैसे उसी कोख से पैदा हुआ 
फ़िर क्यूँ मेरा बहिष्कार किया गया? 
है कुछ सवाल मेरे जेहन में अब, 
जिन्हें जब मैं पूछता हूँ 
हिजड़े हो हिजड़े बन कर रहो 
हमारे समाज से दूर रहो 
हमेशा यही जबाब  बस दिया गया!! 

                              - अपनी कलम 🖋️

सिर्फ़ मैं भिन्न क्यूँ? वो कैसी सुबह थी जब मुझमें कुछ अलग भाँपा गया ना परिवार का साथ मिला ना माँ का साया मिला एक नए संसार को मेरा घर बतलाया गया उसी क्षण मुझे सामाजिक दायरों में नाप दिया गया ग़ैरों की क्या बात करूँ? अपनों ने भी नकार दिया बराबरी का हक़ तो लिखा गया है कागजातों पर ज़मीनी हकीक़त में इसे मानने से इंकार किया गया सबके जैसे उसी कोख से पैदा हुआ फ़िर क्यूँ मेरा बहिष्कार किया गया? है कुछ सवाल मेरे जेहन में अब, जिन्हें जब मैं पूछता हूँ हिजड़े हो हिजड़े बन कर रहो हमारे समाज से दूर रहो हमेशा यही जबाब बस दिया गया!!                               - अपनी कलम 🖋️

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