तेरी सूरत पे तुझको नाज़ है तो ग़म कैसा,
पर नज़र को कोई और भाए ऐसा मंजर नही मांगा ।
तू मुस्कुराए मानों लहलहाती फ़सल कोई,
बस एक तेरे सिवा कोई बंजर नही मांगा ।
देखकर नाम मेरे नाम के साथ, जल गया जमाना,
मैंने घर के उनका खजाना तो नहीं मांगा ।
©Navash2411
#नवश