लड़खड़ा से रहें हैं कदम अब चलते चलते, साथ निभाए ता | हिंदी शायरी
"लड़खड़ा से रहें हैं कदम अब चलते चलते,
साथ निभाए ताउम्र, वो हमसफ़र ढूंढ़ रहा हूं
दर्द लिख रहा हूं काग़ज़ पर, तेरी यादों को कर सके जो बयां वो लफ्ज़ ढूंढ़ रहा हूं।
-प्रशांत द्विवेदी"
लड़खड़ा से रहें हैं कदम अब चलते चलते,
साथ निभाए ताउम्र, वो हमसफ़र ढूंढ़ रहा हूं
दर्द लिख रहा हूं काग़ज़ पर, तेरी यादों को कर सके जो बयां वो लफ्ज़ ढूंढ़ रहा हूं।
-प्रशांत द्विवेदी