बादल आकाँक्षाओ के उमड़ते रहे घुमड़ते रहे खोजते रहे प | हिंदी विचार

"बादल आकाँक्षाओ के उमड़ते रहे घुमड़ते रहे खोजते रहे पिय प्रीतम को बेतहाशा वो मचलते रहे बन बूँदे नन्ही नन्ही जा बरसे वही कही जहाँ थी पिय की गली बादल आकॉंक्षाओ के बरस पड़े ©Pravesh Sharma"

 बादल आकाँक्षाओ के
उमड़ते रहे
घुमड़ते रहे
खोजते रहे पिय प्रीतम को
बेतहाशा वो
मचलते रहे
बन बूँदे नन्ही नन्ही
जा बरसे वही कही
जहाँ थी पिय की गली
बादल आकॉंक्षाओ के
बरस पड़े

©Pravesh Sharma

बादल आकाँक्षाओ के उमड़ते रहे घुमड़ते रहे खोजते रहे पिय प्रीतम को बेतहाशा वो मचलते रहे बन बूँदे नन्ही नन्ही जा बरसे वही कही जहाँ थी पिय की गली बादल आकॉंक्षाओ के बरस पड़े ©Pravesh Sharma

#badal

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