जब नासमझ थी तो लोग चाँद समझ कर घूरते थे। अब समझ इत

"जब नासमझ थी तो लोग चाँद समझ कर घूरते थे। अब समझ इतनी है कि खुद को सूरज बना दिया। अब किसी की ताकत ही कहाँ नजर उठा के देखने की भी। ©Jasmin vahora"

 जब नासमझ थी तो लोग चाँद समझ कर घूरते थे।
अब समझ इतनी है कि खुद को सूरज बना दिया।
अब किसी की ताकत ही कहाँ नजर उठा के देखने की भी।

©Jasmin vahora

जब नासमझ थी तो लोग चाँद समझ कर घूरते थे। अब समझ इतनी है कि खुद को सूरज बना दिया। अब किसी की ताकत ही कहाँ नजर उठा के देखने की भी। ©Jasmin vahora

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