तलब जिंदगी की,,
ये जिंदगी हमें न जानें कितने
सपनों , चेहरों, रास्तों से मिलाती है
पर एक दिन वो भी मोड़ ला खड़ा करती है
जहां से न किसी सपनों की
न किसी चेहरों की तलब रह जाती है
रह जाती है तलब तो बस सफ़र की
जिसे अंतिम क्षण तक जीने की हसरत रहती है
पर अफ़सोस वो हसरत भी अधूरी रह जाती है !!
©Vivek
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