White कागज़ी यादें शेर बन दहाड़ रही बता रही खूं र | हिंदी Poetry

"White कागज़ी यादें शेर बन दहाड़ रही बता रही खूं रेज़ी से किसका दामन लाल है, अदालत कुदरती होगा गर वकील वक्त ए रूह हो बे बदन है आंसू सो लाज़िम है मेरे मंसूबे बस जज़्बात से बने हुए हो देख देख देख दीदे फाड़ देख रूतबा अभी भी काफ़ी बड़ा है इंसाफ का ©Prachi Sharma"

 White कागज़ी यादें शेर बन दहाड़ रही 
बता रही खूं रेज़ी से किसका दामन लाल है,
 अदालत कुदरती होगा गर वकील
 वक्त ए रूह हो बे बदन है आंसू सो लाज़िम है 
मेरे मंसूबे बस जज़्बात से बने हुए हो
देख देख देख दीदे फाड़ देख रूतबा
 अभी भी काफ़ी बड़ा है इंसाफ का

©Prachi Sharma

White कागज़ी यादें शेर बन दहाड़ रही बता रही खूं रेज़ी से किसका दामन लाल है, अदालत कुदरती होगा गर वकील वक्त ए रूह हो बे बदन है आंसू सो लाज़िम है मेरे मंसूबे बस जज़्बात से बने हुए हो देख देख देख दीदे फाड़ देख रूतबा अभी भी काफ़ी बड़ा है इंसाफ का ©Prachi Sharma

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