ये कैसा भेद है नैन मिलते ही
ह्रदय में कुछ उल्लास है ज़रा सा खेद है
किसी की प्रतीक्षा है या पश्चाताप है
भावनाओं का तालाब है
चेतनाओ के दरिया है
मुख सुर्ख गुलाब है
तमाम अनगिनत शब्द है
अनसुलझे लेहज़ो में
शब्दों का फैलाव है
एक चेहरा लेहराता है
बुझते हुए चिरागो में
एक भी जवाब मिलता नहीं इन सवालों में
कोई किसी का क्यों हों जाता है चंद मुलाकातों में
एक राज़ ए प्रेम पोशिदा है
इतनी वार्तालापो में
एक बात रह जाती है इतनी बातो में
कोई अजनबी बुलाता है
नीम शब ख़्वाबों में
नीली झील किनारे ये कौन मुझको पुकारे
सन्नाटे है गलियों में और छुप सी हैं दीवारें
फूल और कली सब हैरान है
मेरी किसकी चहलकदमी से
लेकिन सरगोशीयाँ करते है गालियारे
ताइर ए क़ल्ब क़ैद है एक पल भरती है अगले
पल खुल जाती है दरारे
©qais majaz,pheonix