खड़ा अकेला वो सोच रहा !
बदलता सबको,
वो बंद आंखों से देख रहा ।
ये कैसे,
रुप लोगो ने अब
ले लिए है।
अपनी सादगी, सरलता
और अपनी अच्छाई को
अब क्यों हर कोई भूल गया है?
क्यू सब एक दूजे के लिए
पराया बन गया?
क्यों अब अनजान लोगो
से सब डर लगने लगा है?
अब क्यू बिन काम के
एक दूजे से लोग
ना मिलते हैं।
इक-दूजे की परवाह,
करना भी भूल गए है।
ऐसा मैंने तो ना सोचा
जब मैंने ये संसार रचा
था।
©Ujjwal Kaintura
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