मैने कब कहां" कि तुम पराए हो क्यों गलतफहमी तुम य | हिंदी कविता

""मैने कब कहां" कि तुम पराए हो क्यों गलतफहमी तुम ये बसाए हो क्यों दिल में इतना कुछ दबाए हो बता दो ना मुझको तुमको जो बताना है अल्फाजों को दबाने से कोई फायदा नहीं होता ये दिन ब दिन नया उग आता है और धीरे धीरे अपने मन में घर कर जाता है क्यों झूठे दिलासे दिया करते हो खुद को वो मेरी होगी या नहीं मुझको तो पता नहीं, जो भी दिल में तुम्हारे बता दो ना अब मुझको"

 "मैने कब कहां" कि तुम पराए हो 
क्यों गलतफहमी तुम ये बसाए हो
क्यों दिल में इतना कुछ दबाए हो
               बता दो ना मुझको तुमको जो बताना है 
                   अल्फाजों को दबाने से कोई फायदा
            नहीं होता ये दिन ब दिन नया उग आता है 
          और धीरे धीरे अपने मन में घर कर जाता है
क्यों झूठे दिलासे दिया करते हो खुद को
वो मेरी होगी या नहीं मुझको तो पता नहीं,
जो भी दिल में तुम्हारे बता दो ना अब मुझको

"मैने कब कहां" कि तुम पराए हो क्यों गलतफहमी तुम ये बसाए हो क्यों दिल में इतना कुछ दबाए हो बता दो ना मुझको तुमको जो बताना है अल्फाजों को दबाने से कोई फायदा नहीं होता ये दिन ब दिन नया उग आता है और धीरे धीरे अपने मन में घर कर जाता है क्यों झूठे दिलासे दिया करते हो खुद को वो मेरी होगी या नहीं मुझको तो पता नहीं, जो भी दिल में तुम्हारे बता दो ना अब मुझको

#perpos

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