क्या दर्द सुनोगे ?
तुम दर्द समझते हो,
मेरे ज़हीन हसीन दर्द,
मैं चाहता हूं कुछ लिखूं,
बेशर्त मैं तुम्हें लिखूंगा,
और तुमसे कुछ कहूँगा,
मगर कभी लगता है कि,
ऐ दर्द तुम्हें मैं क्या कहूँ,
दर्द कहूँ या दवा कहूँ,
सच कहूँ बेदर्दी नहीं मैं,
इंसा हूं तुम्हें दुआ कहूँगा।
©अदनासा-
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