अनुकूलता में प्रसन्न और प्रतिकूलता में दुखी हो गए ये तो स्थिरता नही है.. दोनों ही परिस्थिति में जो शांत चित्त से परिस्थितियों अनुसार व्यवहार करे वही स्थिर चित्त वाला होगा..
और इसके लिए हमे खुद ही अपना मंथन करना होगा.. हमारा आनंद दूसरों पर नही खुद पर निर्भर करता है दूसरे तो निमित्त बन जाते हैं..
ज्यादातर लोग सहज सरल व्यक्ति को समझ नही पाते तो न समझे... इसमें उनका कोई दोष नही सब अपने अपने हिसाब से सोचते हैं.. इसलिए वे भी अपनी जगह सही होते हैं..
कुसुम..✍️
©Kusum Sharma
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