छिप रहा है सूरज अब धीरे धीरे शाम करते है ममी पापा

छिप रहा है सूरज अब धीरे धीरे शाम करते है
ममी पापा भैया भाभी काका काकी
यह देखकर खेतों में जल्दी जल्दी काम करते है
कभी आसमां में घुमड़ते बादल मन अधीर करते है
नभ में कोटरों को जाते पक्षी पंखो में तेजी भरते है
उषाकाल से घोसलों मे भुखे बच्चे इंतजार करते है

वो सब भी तो इस धरती से कितना दुलार करते है

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