वबाल-ए-जान बनी फिरती है ‎उम्र ज़िंदान बनी फिरती

"वबाल-ए-जान बनी फिरती है ‎उम्र ज़िंदान बनी फिरती है जी में आता है नोच खाऊं खुद को कशमकश पहचान बनी फिरती है एक सबक अक्ल मांगती हो जैसे ‎ बहुत शायान बनी फिरती है ‎ कभी ठोकर पे रक्खी आसाइशें ‎गम का उनवान बनी फिरती है ‎ मैंने भिड़ के ही जानी फितरत इसकी मुहब्बत आसान बनी फिरती है ©Mohini Jugran"

 वबाल-ए-जान बनी फिरती है 
 ‎उम्र ज़िंदान बनी फिरती है

जी में आता है नोच खाऊं खुद को 
कशमकश पहचान बनी फिरती है

 एक सबक अक्ल मांगती हो जैसे 
 ‎ बहुत शायान बनी फिरती है
 ‎
 कभी ठोकर पे रक्खी आसाइशें 
 ‎गम का उनवान बनी फिरती है
 ‎
मैंने भिड़ के ही जानी फितरत इसकी 
मुहब्बत आसान बनी फिरती है

©Mohini Jugran

वबाल-ए-जान बनी फिरती है ‎उम्र ज़िंदान बनी फिरती है जी में आता है नोच खाऊं खुद को कशमकश पहचान बनी फिरती है एक सबक अक्ल मांगती हो जैसे ‎ बहुत शायान बनी फिरती है ‎ कभी ठोकर पे रक्खी आसाइशें ‎गम का उनवान बनी फिरती है ‎ मैंने भिड़ के ही जानी फितरत इसकी मुहब्बत आसान बनी फिरती है ©Mohini Jugran

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