तुमने अभी अभी जो कहा वो अर्ज़ नहीं था, था मैं आवार | हिंदी Shayari

"तुमने अभी अभी जो कहा वो अर्ज़ नहीं था, था मैं आवारा पर ख़ुदग़र्ज़ नहीं था। टूटे होंगे कई शीशें महल के अंदर, माना कि था मुझे शिकवा ग़म –ए –हयात का लेकिन मैं मर्ज़ नहीं था। ©Surkh ( سرخ )"

 तुमने अभी अभी जो कहा वो अर्ज़ नहीं था,
था मैं आवारा पर ख़ुदग़र्ज़ नहीं था।
टूटे होंगे कई शीशें महल के अंदर,
माना कि था मुझे शिकवा ग़म –ए –हयात का
 लेकिन मैं मर्ज़ नहीं था।

©Surkh ( سرخ )

तुमने अभी अभी जो कहा वो अर्ज़ नहीं था, था मैं आवारा पर ख़ुदग़र्ज़ नहीं था। टूटे होंगे कई शीशें महल के अंदर, माना कि था मुझे शिकवा ग़म –ए –हयात का लेकिन मैं मर्ज़ नहीं था। ©Surkh ( سرخ )

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