प्रस्तुत है छोटी-सी नयी हास्य कविता..
"बस ऐसी हमें लुगाई चाहिए"
ना व्हिस्की ना ही वोडका चाहिए,
हमें सिर्फ एक बोतल रम चाहिए।
चला लेंगे काम बिन चटनी के ही,
पकोड़े हमें तो गरमा गरम चाहिए।
न विलायती न देसी गोरी चाहिए,
लुगाई हमें थोड़ी नरम चाहिए।
भले देती हो हमें कितनी ही गाली,
करती हमें प्यार ऐसा भरम चाहिए।
पीके टून मिले जब हम सड़क पर,
निभानी अपना पत्नी धर्म चाहिए।
करें न कभी हमारी झाड़ू से सुताई,
आँखों में बस ऐसी शर्म चाहिए।
✍🏻सुमित मानधना 'गौरव'😎
©SumitGaurav2005
हमें ऐसी लुगाई चाहिए
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