प्रेम करना जितना सरल और सहज होता है उसे निभाना उतना ही दुरूह और कठिन क्योंकि प्रेम में प्रेमी और प्रेमिका दोनों की मज़बूती और कमज़ोरी जानते हैं पर सच्चे प्रेम की सार्थकता तो तभी है न जब आप अपनी प्रेमिका या प्रेमी के सुख और दुःख दोनों में साथ दे, उसे अपने शब्दों से छलनी न करें, उसमें विद्यमान अवगुणों को और स्वयं में समाहित अवगुणों को दूर करते हुए एक-दूजे का सम्मान करें। प्रेम का रिश्ता जब विवाह में परिणत होता है तो जिम्मेदारी और गहरी हो जाती है क्योंकि वो दोनों समाज से लड़कर आगे क़दम बढ़ाते हैं तो आवश्यक हो जाता है कि मिलकर एक-दूजे में समाहित बुराईयों का दमन करते हुए धीरे-धीरे एक ऐसी मिसाल कायम करने की कि लोगों का विश्वास प्रेम से न उठे अन्यथा सच्चे प्रेम की आहुति इस सामाजिक ताने-बाने में हमेशा के लिए दफ़्न हो जाएगी। आज प्रेम विवाह की असफ़लता के अधिक अवसर इसीलिए दृष्टिगत होते हैं क्योंकि विवाहोपरांत प्रेमी और प्रेमिका के दिल में एक - दूसरे के प्रति सम्मान नहीं होता। विवाह तो पति का पत्नी के प्रति और पत्नी का पति के प्रति सम्मान से ही सृजित होता है। अगर आप केवल प्रेमिका को उसके प्रेम करने की सज़ा उसे दुःख देकर उसे ताने मारकर देंगे तो दुनिया से प्रेम पर किसी का यक़ीन नहीं रह जायेगा। अगर आप प्रेमिका होकर पति के सुख दुःख में साथ नहीं देंगे तो प्रेम मर जायेगा।
जीवन की उत्पत्ति का तो आधार ही प्रेम है तो फिर इस छोटी-सी ज़िंदगी को ख़ुशनुमा बनाइये। उस प्रेम को निरर्थक मत होने दीजिए, जिसके भरोसे एक प्रेमिका प्रेमी प्रेमी प्रेमिका के लिए समाज से परिवार से उस पुरातन सोच से लड़कर आपको अपनायी हो। झूठे सब्ज़बाग दिखाकर प्रेम नहीं धोखा किया जाता है। धरातल में रहकर वास्तविकता में जीकर और वास्तविक स्वप्न दिखाकर प्रेमी या प्रेमिका के दिल में प्रेम जागृत करना ही वास्तविक प्रेम है। प्रेम को ताक़त बनाइये। प्रेम की ताक़त तो वो ताक़त है जो दवा में नहीं। आप चाहे जितने बीमार हों दवाएं चल रही हों, जितना आपके प्रेम से बोलने और उसके ख़्याल रखने से उसके स्वास्थ्य में सुधार होगा उतना इन दवाईयों के रासायनिक सम्मिश्रण से कहाँ ? दवाईयां तो शारीरिक रूप से काम करती हैं पर प्रेम मानसिक रूप से विचरता हुआ अपने तन को उस रसायन से अभिपूरित कर देता है जो ये रसायन से बनी दवाईयां भी शायद कर पाएं। इसे ठीक वैसे समझिए कि हम चाहे जितना प्रोटीन ले लें पर जितना रक्त आपके ख़ुश रहने से बढ़ता है उतना खाने से नहीं क्योंकि सारा खेल आपकी मस्तिष्क से विचरने वाली नसों के माध्यम से रक्त के संचरण से उत्पन्न स्रावित प्राकृतिक रसायन का होता है। आपको कभी न ठीक होने वाले रोगों तक से जीत दिला देता है। ये होती प्रेम की ताक़त। कभी इस भगदौड़ और आपाधापी भरे जीवन के साथ अपने अंदर के इंसान के वास्तविक स्वरूप के सामने आईने के सामने बैठकर सोचियेगा ज़रूर, जवाब ख़ुद ब ख़ुद मिल जाएगा।
मेरी राधिका कहा करती है कि प्रेम में उसके शरीर को पा जाना प्रेम थोड़ी न है प्रेम तो वो है जिसे देखकर आज का समाज प्रेम विवाह को भी अपना ले, उसकी सफ़लता इस क़दर परचम लहराए कि समाज को यक़ीन हो कि प्रेम करना गुनाह नहीं और ये सब आज कल के युवाओं के ऊपर है। केवल दैहिक सुख की प्राप्ति कर लेना उसके बाद जैसे ही जीवन में जिम्मेदारी आयी परेशान हो जाएं लड़ाई - झगड़े करने लग जाएं एक दूजे का सम्मान भूल जाएं तो वो प्रेम हो ही नहीं सकता। प्रेम तो जीना सिखाता है जीने में चिंता के बीज बोना और उसे पालना थोड़ी न।
राधे-राधे
©Jitendra VIJAYSHRI Pandey "JEET "
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