हसीन वादियों का सपना दिखाने वाले,
छोड़ जाते हैं अकेला हमें रुलाने को |
जिसने ना याद किया हमको एक अर्से से,
हम उसे याद किया करता हैं भुलाने को |
किसी ने छोड़ दिया था मुझे कभी तन्हा,
उसी ने रो के कहा है गले लगाने को |
लोग पागल समझ के पत्थरों से मारते हैं,
मुझसे कहते हैं तेरा शहर छोड़ जाने को |
अब तो सच्चाइयों से वास्ता भी रखता हूँ,
फ़िर भी आता नहीं तरस क्यूँ इस ज़माने को |
©Chandan Navik 'VINAMRA'
गले लगाने को 😔💔💔💔
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