मृग नयनी चंचल चितवन, मन मूरत एक समाय गयी। जब एक झल | मराठी कविता

"मृग नयनी चंचल चितवन, मन मूरत एक समाय गयी। जब एक झलक उसकी देखी, हृदय को मेरे भाय गयी। हम सुध-वुध अपनी भूल गए, जब सामने वो मेरे आयी। चातक सी देख दशा मेरी, स्वाति सी वो मुस्काय गयी।। नृपेंद्र शर्मा "सागर" ©Nirpendra Sharma"

 मृग नयनी चंचल चितवन, मन मूरत एक समाय गयी।
जब एक झलक उसकी देखी, हृदय को मेरे भाय गयी।
हम सुध-वुध अपनी भूल गए, जब सामने वो मेरे आयी।
चातक सी देख दशा मेरी, स्वाति सी वो मुस्काय गयी।।

नृपेंद्र शर्मा "सागर"

©Nirpendra Sharma

मृग नयनी चंचल चितवन, मन मूरत एक समाय गयी। जब एक झलक उसकी देखी, हृदय को मेरे भाय गयी। हम सुध-वुध अपनी भूल गए, जब सामने वो मेरे आयी। चातक सी देख दशा मेरी, स्वाति सी वो मुस्काय गयी।। नृपेंद्र शर्मा "सागर" ©Nirpendra Sharma

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