एक समय आएगा जब तुम्हारा संघर्ष शिखर पर होगा जब थक

"एक समय आएगा जब तुम्हारा संघर्ष शिखर पर होगा जब थक चुके होगे निरन्तर प्रयासो के परिश्रम से कोई मोह नही होगा अपने तन की सजावट से चेतना मर चुकी होगी बदन की थकावट से जब उम्मीदों की शाम ढल चुकी होगी तब बैठ जाना साहिल पर एक नए सवेरे के लिए और देखना उन समुद्र की टकराती लहरों को जो जीत लेने की चाह में समुद्र से लड़कर आती है देखना उस आसमां को जो धरती से कितनी दूर है किन्तु दूर-क्षितिज पर वो भी धरती को चूमता है तब कतरा-कतरा समेटना खुद को लड़ने के लिए दुर्गम पहाड़,बर्फीले रेगिस्तान की फतह के लिए एक नये जोश,नये उन्माद,नये विभव से फैलाना अपने हाथो और समेट लेना आकाश को इन बाँहों में तब पाओगे क्या है जो समेटा न जाए सके इन बाहों में तब निकल पड़न सम्पूर्ण समर्पण के साथ अंतिम प्रयास के लिए "पैर में कांटे लगे या दर्द सौ बार हो जीत हो या हार हो बस यही अंतिम बार हो।" ©Saurabh Yadav"

 एक समय आएगा जब तुम्हारा संघर्ष शिखर पर होगा
जब थक चुके होगे निरन्तर प्रयासो के परिश्रम से 
कोई मोह नही होगा अपने तन की सजावट से
चेतना मर चुकी होगी बदन की थकावट से
जब उम्मीदों की शाम ढल चुकी होगी
तब बैठ जाना साहिल पर एक नए सवेरे के लिए
और देखना उन समुद्र की टकराती लहरों को
जो जीत लेने की चाह में समुद्र से लड़कर आती है
देखना उस आसमां को जो धरती से कितनी दूर है
किन्तु दूर-क्षितिज पर वो भी धरती को चूमता है
तब कतरा-कतरा समेटना खुद को लड़ने के लिए
दुर्गम पहाड़,बर्फीले रेगिस्तान की फतह के लिए
एक नये जोश,नये उन्माद,नये विभव से
फैलाना अपने हाथो और समेट लेना आकाश को इन बाँहों में 
तब पाओगे क्या है जो समेटा न जाए सके इन बाहों में
तब निकल पड़न सम्पूर्ण समर्पण के साथ अंतिम प्रयास के लिए
"पैर में कांटे लगे या दर्द सौ बार हो
जीत हो या हार हो बस यही अंतिम बार हो।"

©Saurabh Yadav

एक समय आएगा जब तुम्हारा संघर्ष शिखर पर होगा जब थक चुके होगे निरन्तर प्रयासो के परिश्रम से कोई मोह नही होगा अपने तन की सजावट से चेतना मर चुकी होगी बदन की थकावट से जब उम्मीदों की शाम ढल चुकी होगी तब बैठ जाना साहिल पर एक नए सवेरे के लिए और देखना उन समुद्र की टकराती लहरों को जो जीत लेने की चाह में समुद्र से लड़कर आती है देखना उस आसमां को जो धरती से कितनी दूर है किन्तु दूर-क्षितिज पर वो भी धरती को चूमता है तब कतरा-कतरा समेटना खुद को लड़ने के लिए दुर्गम पहाड़,बर्फीले रेगिस्तान की फतह के लिए एक नये जोश,नये उन्माद,नये विभव से फैलाना अपने हाथो और समेट लेना आकाश को इन बाँहों में तब पाओगे क्या है जो समेटा न जाए सके इन बाहों में तब निकल पड़न सम्पूर्ण समर्पण के साथ अंतिम प्रयास के लिए "पैर में कांटे लगे या दर्द सौ बार हो जीत हो या हार हो बस यही अंतिम बार हो।" ©Saurabh Yadav

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