कुछ घिस देते हैं नाखून पेट पालने की खातिर, और कुछ | हिंदी Poetry

"कुछ घिस देते हैं नाखून पेट पालने की खातिर, और कुछ नाखून बढ़वाने का फैशन रखते हैं...... कुछ सड़को पर बीता देते हैं जीवन अपना , कुछ महलों में रह कर खुद कोआलीशान करते हैं..... इंसानियत ही खत्म है आज कल के लोगो में , खुद की तकलीफ को तकलीफ और दुसरो की तकलीफ को मज़ाक समझते हैं..... और लाख रुपए की गाड़ियों में घूमने वाले ,चंद पैसों के लिए ख़ुद को शर्म सार करते हैं..... बेज्जती कर अपने से छोटो की ,खुद को पढ़े लिखे समझदार समझते हैं... .... अपने पैसों पर रोब दिखाते हैं कल्ब, बार और पार्टियों में , मगर किसी मजदूर की मजदूरी देने में तकलीफे हज़ार करते हैं.... चढ़ा देते है पत्थर की मूर्ति पर 5kg की मिठाई तक, कोई दिख जाए जो भूखा तो उसका तिरस्कार करते हैं.... कलयुग में लोग इंसानियत खोते जा रहे , दूसरे की बेबसी को मज़ाक समझते हैं... ©Suman S"

 कुछ घिस देते हैं नाखून
पेट पालने की खातिर, और कुछ नाखून बढ़वाने का फैशन रखते हैं......
कुछ सड़को पर बीता देते हैं जीवन अपना , कुछ महलों में रह कर खुद कोआलीशान करते हैं.....
इंसानियत ही खत्म है आज कल के लोगो में , खुद की तकलीफ को तकलीफ और दुसरो की तकलीफ को मज़ाक समझते हैं.....
और लाख रुपए की गाड़ियों में घूमने वाले ,चंद पैसों के लिए ख़ुद को शर्म सार करते हैं.....
 बेज्जती कर अपने से छोटो की ,खुद को पढ़े लिखे समझदार समझते हैं... ....
अपने पैसों पर रोब दिखाते हैं कल्ब, बार और पार्टियों में , मगर किसी मजदूर की मजदूरी देने में तकलीफे हज़ार करते हैं....
चढ़ा देते है पत्थर की मूर्ति पर 5kg की मिठाई तक,
कोई दिख जाए जो भूखा तो उसका तिरस्कार करते हैं....
कलयुग में लोग इंसानियत खोते जा रहे , दूसरे की बेबसी को मज़ाक समझते हैं...

©Suman S

कुछ घिस देते हैं नाखून पेट पालने की खातिर, और कुछ नाखून बढ़वाने का फैशन रखते हैं...... कुछ सड़को पर बीता देते हैं जीवन अपना , कुछ महलों में रह कर खुद कोआलीशान करते हैं..... इंसानियत ही खत्म है आज कल के लोगो में , खुद की तकलीफ को तकलीफ और दुसरो की तकलीफ को मज़ाक समझते हैं..... और लाख रुपए की गाड़ियों में घूमने वाले ,चंद पैसों के लिए ख़ुद को शर्म सार करते हैं..... बेज्जती कर अपने से छोटो की ,खुद को पढ़े लिखे समझदार समझते हैं... .... अपने पैसों पर रोब दिखाते हैं कल्ब, बार और पार्टियों में , मगर किसी मजदूर की मजदूरी देने में तकलीफे हज़ार करते हैं.... चढ़ा देते है पत्थर की मूर्ति पर 5kg की मिठाई तक, कोई दिख जाए जो भूखा तो उसका तिरस्कार करते हैं.... कलयुग में लोग इंसानियत खोते जा रहे , दूसरे की बेबसी को मज़ाक समझते हैं... ©Suman S

#dhoop

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