अपनो के ही द्वारा दिये गये गम केआग में जलती रही मो | हिंदी कविता

"अपनो के ही द्वारा दिये गये गम केआग में जलती रही मोम की तरह पिघलती रही पिघलके आधी हो चुकी हूँ । अब तो कोई फर्क नहीं पड़ता किसी के जलाने से हम अपने गमो को खुद हथेली पे लिये घुमते हैं। ©Rani Jaiswal"

 अपनो के ही द्वारा दिये गये
गम केआग में जलती रही
मोम की तरह पिघलती रही
 पिघलके आधी हो चुकी हूँ ।
अब तो कोई फर्क नहीं पड़ता
किसी के जलाने से
हम अपने गमो को
खुद हथेली पे लिये घुमते हैं।

©Rani Jaiswal

अपनो के ही द्वारा दिये गये गम केआग में जलती रही मोम की तरह पिघलती रही पिघलके आधी हो चुकी हूँ । अब तो कोई फर्क नहीं पड़ता किसी के जलाने से हम अपने गमो को खुद हथेली पे लिये घुमते हैं। ©Rani Jaiswal

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