जंगल जंगल ढूंढ रहा है, मृग अपनी कस्तूरी... कितना म
"जंगल जंगल ढूंढ रहा है,
मृग अपनी कस्तूरी...
कितना मुश्किल है तय करना,
खुद से खुद की दूरी...
भीतर शून्य, बाहर शून्य,
शून्य चारों ओर है...
मैं नहीं हूं मुझमें फिर भी,
मैं-मैं का शोर है..."
जंगल जंगल ढूंढ रहा है,
मृग अपनी कस्तूरी...
कितना मुश्किल है तय करना,
खुद से खुद की दूरी...
भीतर शून्य, बाहर शून्य,
शून्य चारों ओर है...
मैं नहीं हूं मुझमें फिर भी,
मैं-मैं का शोर है...