ये काली रातें ही तो मेरी गवाही में है
रौशनी में तो मैं दोहरी किरदार जी रही हूँ ।
नवरात्रि में पूज रहे हैं माँ दुर्गा को सब
मैं अब भी खुद से ही आंखें चुरा रही हूँ ।
किस्मतों में जो लिखा है वो होकर रहेगा ,
ये दुख, ये दर्द ,ये तकलीफ़ें बस मेरी है
अब मैं इनसे अपना रिश्ता निभा रही हूँ ।
दर -दर भटकने से किस्मत नहीं बदला करते
इसलिए मैं अपने आज से कल को बेहतर बना रही हूँ ॥
©Rakhi Jha
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