हूं बे ख़बर खुद से दर-ब-दर भटक रही हूं... आज भी इ | हिंदी Shayari Vide

"हूं बे ख़बर खुद से दर-ब-दर भटक रही हूं... आज भी इस युग में अपना वजूद ढूंढ रही हूं... एक घर श्मशान कर एक घर को स्वर्ग बना रही हूं... आज भी इस युग में अपना वजूद ढूंढ रही हूं... मां कहती है सब दुखों को सह कर तू जीना सीख कान खुले हैं तो... बेहरा बन्ना सीख आंखें हैं तेरी तो... बंद रखना सीख जुबा है तेरी तो... चुप रहना सीख अपने ख्वाबों को साझा करने जा रही हूं... नई जीवन को अपनाने जा रही हूं.... कुछ याद है... कुछ भूल रहीं हूं... लो मैं पंख अब खोल रही हूं अब आए लाख आंदिया ना रोक पाएगी मुझे मैं आस्मां को छूने उड़ान भर रही हूँ ©Tulsi Kumari "

हूं बे ख़बर खुद से दर-ब-दर भटक रही हूं... आज भी इस युग में अपना वजूद ढूंढ रही हूं... एक घर श्मशान कर एक घर को स्वर्ग बना रही हूं... आज भी इस युग में अपना वजूद ढूंढ रही हूं... मां कहती है सब दुखों को सह कर तू जीना सीख कान खुले हैं तो... बेहरा बन्ना सीख आंखें हैं तेरी तो... बंद रखना सीख जुबा है तेरी तो... चुप रहना सीख अपने ख्वाबों को साझा करने जा रही हूं... नई जीवन को अपनाने जा रही हूं.... कुछ याद है... कुछ भूल रहीं हूं... लो मैं पंख अब खोल रही हूं अब आए लाख आंदिया ना रोक पाएगी मुझे मैं आस्मां को छूने उड़ान भर रही हूँ ©Tulsi Kumari

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