इतनी नादानी कहा से आती थी ?
हर चांदनी आते आते तेरा पैग़ाम लाती थी।
बस कमी खलती है तेरी अब !
आज भी चांदनी तले दामन सितारों का रहता है।
मेरी जिद थी तेरी जुल्फों में इन तारों को बखेरने की!
उन इश्क़ के वादियों में अपने यादों को महकाने की।
कतरा कतरा तोड़ खुदको , तेरी ख्वाहिशें सजाई है मैंने।
इस बरष की ईद भी तन्हाई को बुलाई है मैंने।
तेरे बदन के इत्र को अपने सासों में संजोया है,
थोड़ा ज्यादा चाहने की तजस्सूस में हर बार तुझे खोया है।
-umi pandey
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