अब ध्वस्त हर उन्माद चाहिए.. ये बर्बरताएं, बर्बाद | हिंदी कविता

"अब ध्वस्त हर उन्माद चाहिए.. ये बर्बरताएं, बर्बाद चाहिए.. न्याय नीति का निनाद चाहिए- हे कृष्ण, फिर शंखनाद चाहिए। दुशासनों की हो रही जयकार, उजालों में भी पसरा अंधकार, झूठी खबरों का होता प्रचार, अब,महाभारत की याद चाहिए- हे कृष्ण, फिर शंखनाद चाहिए। पाप, पापी हो रहे खूंखार, दुर्जनों, खोटो से ढका संसार, दृष्टिवान अंधो का हुआ विस्तार, सुदर्शन चक्र का आघात चाहिए- हे कृष्ण, फिर शंखनाद चाहिए। विधर्मियों से भर गया बाजार, मानकों का बचा ना आधार, त्रस्त पीड़ित जन मन करें पुकार, ये बर्बरताएं बर्बाद चाहिए- हे कृष्ण, फिर शंखनाद चाहिए। डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि' 🇮🇳 ©Anand Dadhich"

 अब ध्वस्त हर उन्माद चाहिए.. 
ये बर्बरताएं, बर्बाद चाहिए.. 
न्याय नीति का निनाद चाहिए-
हे कृष्ण, फिर शंखनाद चाहिए।
     दुशासनों की हो रही जयकार,
     उजालों में भी पसरा अंधकार,
     झूठी खबरों का होता प्रचार,
     अब,महाभारत की याद चाहिए-
     हे कृष्ण, फिर शंखनाद चाहिए।
पाप, पापी हो रहे खूंखार,
दुर्जनों, खोटो से ढका संसार,
दृष्टिवान अंधो का हुआ विस्तार,
सुदर्शन चक्र का आघात चाहिए-
हे कृष्ण, फिर शंखनाद चाहिए।
     विधर्मियों से भर गया बाजार,
     मानकों का बचा ना आधार,
     त्रस्त पीड़ित जन मन करें पुकार,
      ये बर्बरताएं बर्बाद चाहिए-
     हे कृष्ण, फिर शंखनाद चाहिए।

डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि' 🇮🇳

©Anand Dadhich

अब ध्वस्त हर उन्माद चाहिए.. ये बर्बरताएं, बर्बाद चाहिए.. न्याय नीति का निनाद चाहिए- हे कृष्ण, फिर शंखनाद चाहिए। दुशासनों की हो रही जयकार, उजालों में भी पसरा अंधकार, झूठी खबरों का होता प्रचार, अब,महाभारत की याद चाहिए- हे कृष्ण, फिर शंखनाद चाहिए। पाप, पापी हो रहे खूंखार, दुर्जनों, खोटो से ढका संसार, दृष्टिवान अंधो का हुआ विस्तार, सुदर्शन चक्र का आघात चाहिए- हे कृष्ण, फिर शंखनाद चाहिए। विधर्मियों से भर गया बाजार, मानकों का बचा ना आधार, त्रस्त पीड़ित जन मन करें पुकार, ये बर्बरताएं बर्बाद चाहिए- हे कृष्ण, फिर शंखनाद चाहिए। डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि' 🇮🇳 ©Anand Dadhich

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