मन हरा मन मरा रात के साये में, चाँद को एक-टक ताकते | हिंदी विचार

"मन हरा मन मरा रात के साये में, चाँद को एक-टक ताकते हुए मन ही मन ये मन मन से कह चला कि आ! जुगनुओं की इस अंधेरी बस्ती में मन के किंवाड़ खोल ज़रा! यूँ तो कई शागिर्द है तेरे इस ज़माने में ऐ मन! मगर कौन तेरे साथ चला?              ~ ए° के° विश्वकर्मा! ©Ak vishwakarma"

 मन हरा
मन मरा
रात के साये में, चाँद को एक-टक ताकते हुए
मन ही मन ये मन
मन से कह चला
कि आ!
जुगनुओं की इस अंधेरी बस्ती में
मन के किंवाड़ खोल ज़रा!
यूँ तो कई शागिर्द है तेरे
इस ज़माने में
ऐ मन! मगर कौन तेरे साथ चला?
    
         ~ ए° के° विश्वकर्मा!

©Ak vishwakarma

मन हरा मन मरा रात के साये में, चाँद को एक-टक ताकते हुए मन ही मन ये मन मन से कह चला कि आ! जुगनुओं की इस अंधेरी बस्ती में मन के किंवाड़ खोल ज़रा! यूँ तो कई शागिर्द है तेरे इस ज़माने में ऐ मन! मगर कौन तेरे साथ चला?              ~ ए° के° विश्वकर्मा! ©Ak vishwakarma

मन!

#dilemma

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