कुछ जरूरतें... कुछ जिम्मेदारियां और बहुत सी दबी ख् | हिंदी विचार Video

"कुछ जरूरतें... कुछ जिम्मेदारियां और बहुत सी दबी ख्वाहिशों का अकेला श्मसान है पुरुष.... दर्द होता है पर कभी बिलखता नहीं शायद अकेले में टूटता होगा आखिर इंसान हैं पुरुष... सबके लिए हकीकत खुद के लिए ख्वाब है स्त्री.... हां कांटे जरूर है लेकिन कोमल गुलाब है स्त्री.... दर्द में खुद टूटकर भी सबको समेटे रखतीं हैं स्त्री..... हर ज़ख्म के मरहम की एक ऐसी किताब है स्त्री.... ©सुप्रिया "

कुछ जरूरतें... कुछ जिम्मेदारियां और बहुत सी दबी ख्वाहिशों का अकेला श्मसान है पुरुष.... दर्द होता है पर कभी बिलखता नहीं शायद अकेले में टूटता होगा आखिर इंसान हैं पुरुष... सबके लिए हकीकत खुद के लिए ख्वाब है स्त्री.... हां कांटे जरूर है लेकिन कोमल गुलाब है स्त्री.... दर्द में खुद टूटकर भी सबको समेटे रखतीं हैं स्त्री..... हर ज़ख्म के मरहम की एक ऐसी किताब है स्त्री.... ©सुप्रिया


कुछ जरूरतें है कुछ जिम्मेदारियां

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