वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर
इसकी आदत भी आदमी सी है
आप रुक जाइये, ये वक़्त भी निकल जाएगा। ये वक़्त ख़ैरियत से निकले, उसके लिए आप का रुक जाना लाज़मी है। अपने ही घर में नज़रबंद होना ज़रूरी है।
घर में नज़रबंद होना, आदतन, फ़ितरतन, आदमी को मंज़ूर नहीं। लेकिन इस बार ये नज़रबंदी क़बूल कर लीजिए। उसमें सिर्फ़ आपका ही भला नहीं, पूरी इंसानी नस्ल का भला है। सिर्फ़ हमारे घर, मोहल्ले, शहर और देश में नहीं, ये पूरी दुनिया में हो रहा है।
घर के बाहर क़दम उठाने से पहले, रुकिए, सोचिए और लौट जाइए। घर में रहिए-महफ़ूज़ रहिए।
- गुलजार