घटा बदलते मौसम में जब उसका आना हो उठा ।।
बहती हवाओं का आपस में गूफ्तगू होना हो उठा ।।
दूर तलक नजरें दौड़ी खेत खलिहान सब महका उठा ।।
बारिश कि मंद-मंद बुंदों से उसका आंचल भीग उठा ।।
खाली घर की बैठक में बिता बचपन तब गूंज उठा ।।
सूखे सोते में जलधारा का समर्पण हो उठा ।।
उड़ते पंछियों का शोर कानों में फिर गूंज उठा ।।
हल्की सुरज की लाली से अम्बर रंगीन सा हो उठा ।।
दूर शहर से गांवों में जब उसका आना हो उठा ।।
मासूम से उस चेहरे पर मुस्कान का आना हो उठा ।।
चकाचौंध से दूर यहां मेंढ़ों का रस्ता सिहर उठा ।।
घटा बदलते मौसम में जब उसका आना हो उठा ।।
@लेखकRai
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