आ जाये ज़िंदगी किसी के काम यहाँ
कोई कह दे वो फरिश्ता, मैं ही हूँ ।
जाने किसके लिए हूँ बना वो है कहाँ
एक जो हो करीबी, वो रिश्ता मैं ही हूँ ।
हर शख़्स को है शिकायतें कहीं
वो एक बेदाग़दार किस्सा, मैं ही हूँ।
कहीं अंधेरे में भी खिलता है
वो एक बहार-ए-गुलिस्तां, मैं ही हूँ ।
मंजिल भी रहती है कुछ ख़फ़ा सी
वो एक खुशनुमा इंसा, मैं ही हूँ ।
मेरी पहचान यही है की इस जँहा
मुझसा एक है केवल, वो मैं ही हूँ ।
©RUPENDRA SAHU "रूप"
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