जैसे सूखे पत्ते बयार में
वैसे दिल एक नाजिनी के प्यार में
बहक रहा है .. सांस- सांस
दहक रहा है सांस- सांस
हर घड़ी शाम ओ शहर
रात दिन आठों पहर
उसका ही खुमार है
अजब सा ये बुखार है ..
दर बदर फिरे नजर
उल्फत की लहर -लहर
कही वो मिले अगर
महक उठे सांसों का शजर
पर यही तो मलाल है
वो गुम कही फिलहाल है
©Rajeev Ranjan
#Freedom